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यस आई एम— 19 [गॉट ए न्यू नेम]

★★★
एक अधेड़ उम्र का व्यक्ति रेस्टिरेंट में बैठा हुआ था। एक आदमी उसके पास आते हुए बोला। “मालिक आपने तो रेस्टोरेंट को बड़ी जल्दी बुलंदियों पर पहुंचा दिया।”
“नीलकंठ! पहली बात तो मालिक ना कहा करो। तुम मेरे छोटे भाई और दोस्त जैसे हो।” अधेड़ उम्र के व्यक्ति ने कहा। जिसका नाम व्यास था। व्यास आगे बोला। “और दुसरी बात तुमने भी तो मेरा कितना साथ दिया है।” व्यास की आवाज बड़ी ही प्रभावशाली थी।
“ये तो आपका बड़प्पन है। तभी तो एक नौकर भी पर इतना ज्यादा भरोसा किया।” नीलकंठ ने भावुक होते हुए अपनी बात कही। 
“तुम एक बार फिर शुरू हो गए। तुम मेरे साथ तब भी खड़े रहे जब अपनों ने साथ छोड़ दिया।” व्यास ने जवाब दिया और फिर काम में लग गया ताकि नीलकंठ उसके चेहरे पर आए भावों को ना पढ़ सके। व्यास हमेशा अपने अंदर छिपी हुई भावनाओं को बाहर लाने से बचता रहता है।
वह सबके सामने खुद को मजबूत दिखाता है। कोई भी उस मजबूत शख्सियत के चेहरे के पीछे छिपी हुई भावनाओं को नही पढ़ पाता था और ना ही वह पढ़ने देता था। पर जल्द ही उसकी जिन्दगी में कोई आने वाला था। जिस से मिलने के बाद वह अपनी सारी तकलीफे, दुःख और दर्द भूल जाने वाला था।
“और आपने मेरा साथ दिया।” कहकर नीलकंठ चुप हो गया। 
“काम शुरू करने के लिए उम्र की नही जज्बे की जरूरत होती है। मेरे पास अपनों का साथ था तो रेस्टोरेंट तरक्की कर गया।” व्यास ने जवाब दिया।
“और आपके पास तजुर्बे के साथ साथ हुनर  भी तो था।” नीलकंठ ने तारीफ करते हुए कहा।
“तुम भी ना...” कहकर व्यास बीच में ही रूक गया। तभी उसकी नजर रेस्टोरेंट के बाहर खड़ी हुई एक लड़की पर पड़ी।  लड़की के माथे पर चोट लगी हुई थी। लड़की को देखकर ना जाने व्यास को किसकी याद आ गई।
“नील...बाहर खड़ी हुई लड़की को अंदर बुला कर ले आओ।” व्यास ने अपने हाथ से बाहर की ओर इशारा करते हुए कहा।
“ठीक है।” कहते ही नीलकंठ वहां से चला गया। थोड़ी देर बाद लड़की वहां पर आ गई। वह दिखने में काफी दुबली पतली दिख रही थी।
“आपका नाम क्या है?” व्यास ने बड़े ही प्यार से सामने खड़ी हुई लड़की को देखते हुए पूछा। वह कोई और नही बल्कि तृषा थी।
“याद नही।” तृषा ने दिमाग पर जोर देते हुए कहा और फिर आगे बोली। “मुझे अपने बारे में और अपने परिवार के बारे में कुछ भी याद नहीं। कुछ लोगों ने मुझे बचपन में ही कैद कर दिया था। पता नही उन लोगों को मुझ से क्या चाहिए था...” कहकर वह चुप हो गई। उसके चेहरे पर अनगिनत भाव थे।
व्यास उसके चेहरे को पढ़ते हुए बोला। “आपको भूख लगी है क्या?” जवाब में तृषा ने हां में गर्दन हिला दी।
व्यास ने तृषा को खाने को खाना दिया। खाना आते ही वह उसे फटाफट खाने लगी। व्यास खाना खाती हुई तृषा को देखने लगा। देखने में तृषा बेहद ही मासूम दिखाई दे रही थी। खाना खाने के बाद जैसे ही वह वहां से चलने लगी वैसे ही व्यास ने उसे आवाज लगाते हुए अपने पास बुला लिया।
“जी कहिए।” तृषा ने व्यास के पास आते हुए पूछा और फिर आगे बोली। “मेरे पास आपको देने के लिए कुछ भी नही है।” उसने बड़ी ही मासूमियत के साथ जवाब दिया। जो पत्थर दिल इन्सान के दिल को भी पिंघला सकती थी।
“मुझे आपसे कुछ लेना नही बल्कि कुछ देना है।” व्यास ने कहा।
“क्या?” तृषा ने हैरानी के साथ पूछा।
“आपको एक नया नाम और रहने के लिए घर।” व्यास ने कहा और फिर पास में खड़े हुए नीलकंठ का चेहरा देखने लगा। काफी देर तक दोनों एक दूसरे का चेहरा देखते रहे। बाद में नीलकंठ ने हां में सिर हिला दिया।
“क्या?” तृषा ने कहा। उसके चेहरे पर अनगिनत भाव थे। कुछ देर सोचते हुए वह आगे बोली। “पर मुझे फ्री में कुछ भी नही चाहिए।” कहकर वह वहां से चल दी।
“पहले मेरी पूरी बात तो सुन लो।” कुछ देर रुकते हुए व्यास बोला। “तुम मेरे यहां नौकरी कर लेना। मै तुम्हें सैलरी दे दूंगा। इस उम्र में मुझ से अपनी देखभाल नही होती तो तुम मेरी देखभाल भी कर देना। बदले में मै तुम्हें रहने के लिए घर दे दूंगा।” कहकर व्यास लड़की के चेहरे को बड़े गौर से देखने लगा। 
वह खुद में ही खोई हुई थी। थोड़ी देर सोचने के बाद बोली। “ठीक है। पर मै आपको दद्दू कहूंगी..मंजूर है?”
“मंजूर है।” व्यास ने कहा। उसके चेहरे पर खुशी साफ झलक रही थी। वह खुद पर काबू पाते हुए बोला। “और आज से तुम्हारा नाम पंछी।”
“ठीक है।” कहकर पंछी ने हां में गर्दन हिला दी। तृषा को आज एक नया नाम और एक नई पहचान मिल चुकी थी।
“भगवान के यहां देर है अंधेर नही। मुझे भी घर मिल गया।” तृषा ने मन ही मन कहा और फिर आगे बोली। “अब मै आगे की करवाही मतलब जिंदगी आसानी से जी सकती हूं। दद्दू को मुझे देखकर पता नही क्या लगा। पर बचपन में मै अपने मम्मी पापा के साथ इनके रेस्टोरेंट में आती थी। पर वो ये रेस्टोरेंट नही है। क्या हुआ इनके साथ जो इन्होंने रेटोरेंट बदल लिया?” तृषा ने मन ही मन सोचते हुए कहा।
व्यास पंछी को ऊपर छत पर ले गया। वहां पर चार कमरे बने हुए थे। उन्होंने पंछी को उसका कमरा दिखा दिया। 
“ये लो।” व्यास ने उसे नोटों की गड्डी पकड़ाते हुए कहा।
“ये क्या है?” पंछी ने हैरानी के साथ पूछा।
“रुपए या फिर कह लो तुम्हारी एडवांस सैलरी।” व्यास ने जवाब दिया और फिर आगे बोला। “तुम अपनी जरूरत का सामान पास के ही मॉल से खरीद लाओ।”
“अगर मैने आपको धोखा दिया तो?” पंछी ने बड़ी ही मासूमियत से पूछा।
“पहली बात मुझे ऐसा नहीं लगता। दूसरी बात अगर तुमने धोखा दिया तो तुम्हें तुम्हारे कर्मों की सजा भगवान कही ना कही दे ही देंगे। मेरा फर्ज जरूरत के वक्त एक मासूम लड़की की मदद करना है जो मेरी पोती के उम्र की है। अब सब कुछ तुम पर निर्भर करता है, तुम्हें यहां पर रहना है या फिर...” अपनी बात अधूरी छोड़कर व्यास चुप हो गया। 
व्यास की बात सुनकर पंछी के चेहरे के भाव बदलने लगे। उसके चेहरे पर परेशानी साफ झलकने लगी। वह मन ही मन सोचते हुए बोली। “मेरे मम्मी पापा ने मुझे नही पहचाना। पर इन्होने एक ही दिन में....नही, नही पहली मुलाकात में ही मुझे पहचान लिया।”
“क्या सोच रही हो?” व्यास ने पंछी के चेहरे को गौर से देखते हुए पूछा।
“कुछ नही।” पंछी ने जवाब दिया और फिर आगे बोली। “मै आपको कभी भी धोखा नही दूंगी दद्दू। चाहे कुछ भी क्यों ना हो जाए। हमेशा आपके साथ रहूंगी।” पंछी ने अपनी बात कही।
“ना जाने इस लड़की में ऐसा क्या है? इसकी मुस्कान मेरे दिल को सुकून देती है।” व्यास ने मन ही मन सोचते हुए खुद से कहा। सोचते हुए उसके चेहरे पर मुस्कान साफ झलक रही थी। 
“ठीक है मै अब चलती हूं।” पंछी की आवाज सुनकर व्यास अपनी सोच से बाहर आया।
“ठीक है।” व्यास ने जवाब दिया। इतना सुनते ही पंछी वहां से सीधा बराबर में बने हुए मॉल में चली गई। 
उसके लिए सब कुछ बदला बदला था। इतने सालों में काफी कुछ बदल चुका था। वह वैदिक के साथ अक्सर ऐसी जगहों पर आती जाती रहती थी तो उसे वहां पर ज्यादा परेशानी नही हुई पर थोड़ी बहुत तो जरूर हुई।
उसने पहले अपने पहने लायक चार पांच जोड़ी कपड़े खरीदे जो उसके लिए आरामदायक हो। उसने जरूरत का सारा सामान खरीदा और वापिस रेस्टोरेंट में चली गई। जल्द ही पंछी और व्यास एक दूसरे को खून के रिश्तों से भी ज्यादा समझने लगे। आने जाने वालों को वह उसकी सगी पोती ही लगती थी। धीरे धीरे वक्त बीतता गया और कब छः महीने पंख लगाकर उड़ गए किसी को पता ही नही चला। व्यास की मदद से वह आस पास के माहौल में ढल चुकी थी। शुरूवात में उसे बहुत परेशानी हुई पर बाद में सब कुछ सही हो गया।

“भगवान का लाख लाख शुक्र है। जो उन्होंने पंछी को व्यास जी की जिदंगी में भेज दिया।” नीलकंठ ने पास बैठी हुई एक औरत से कहा।
“सही कह रहे हो आप। इस उम्र में बच्चों की तरह हर किसी को अपनों के साथ की जरूरत होती है। खास कर बच्चों की जिनके साथ वे बचपना कर सके और साथ ही साथ अपना वक्त बिता सके।” पास में बैठी हुई औरत ने जवाब दिया।
“सही कह रही हो नलिनी।” नीलकंठ ने जवाब दिया और फिर आगे बोला। “वैसे पंछी से पहले भी व्यास जी को बहुत सारी लडकियां मिली। जिनकी उन्होंने मदद भी की। पर पंछी उन सब से अलग है। कुछ तो खास बात है इस लड़की में। व्यास जी का दिल जीतना बहुत मुश्किल काम है। दिल के वे बेहद ही अच्छे इन्सान है वे हर जरूरतमंद की मदद करते है।
पर उनके दिल के करीब हर कोई नही पहुंच पाता या यूं कहूं कि कोई कोई भी नही पहुंच पाया। पर पंछी ने कुछ ही महीनों में उनके दिल में ऐसे जगह बना ली मानो उनके साथ बचपन से हो।” नीलकंठ ने कहा। उसके चेहरे पर व्यास और पंछी को एक साथ देखकर खुशी साफ दिखाई दे रही थी।
“अपने व्यास जी दिल के बहुत अच्छे और सच्चे इन्सान है। भगवान उन दोनों को हमेशा साथ रखे।” नलिनी ने तारीफ करते हुए कहा और फिर वह मन ही मन प्रार्थना करने लगी।
“और अपनी पंछी भी तो कितनी प्यारी बच्ची है। हम दोनों की भी कितनी ज्यादा परवाह करती है।” नीलकंठ ने कहा। दोनों मियां बीबी, व्यास और पंछी को एक साथ देखकर फूले नही समा रहे थे। वही दूसरी ओर व्यास और पंछी दोनों एक साथ रेस्टोरेंट का काम कर रहे थे।
नलिनी और नीलकंठ, व्यास के साथ ही रेस्टोरेंट के ऊपर बने हुए घर में ही रहते थे। चारों एक साथ बहुत खुश थे। दोनों  अपना काम करने लगे। व्यास काम खत्म करने के बाद छत पर चला गया। पंछी भी उसके पीछे पीछे हो ली।
“दद्दू...दद्दू...” आवाज लगाते हुए पंछी व्यास के पीछे दौड़ रही थी। सीढियों से होते हुए व्यास पहले नीचे आया और फिर उसके पीछे पीछे पंछी भी नीचे आ गई।
“मुझे नही लेनी दवाई।” व्यास ने बच्चों की तरह जिद्द करते हुए कहा।
“ऐसे कैसे नही लेनी?” पंछी ने झूठी नारागजी दिखाते हुए कहा।
“नही लेनी मतलब नहीं लेनी।” व्यास ने अपनी जिद्द पर कायम रहते हुए कहा और फिर जाकर काउंटर पर बैठ गया।
“अगर आपने दवाई नही ली तो फिर आप ठीक कैसे होंगे?” पंछी ने व्यास को डांटते हुए कहा।
“मुझे ठीक नहीं होना?” व्यास ने बड़ी ही लापरवाही के साथ अपनी बात कही। व्यास की बात सुनकर पंछी के चेहरे के भाव बदलने लगे। जिन्हें व्यास ने देख लिया। पंछी रोने वाली हालत में पहुंच गई। व्यास उसे गले से लगाते हुए बोला। “तुम मेरे साथ हो मेरे बच्चे। मुझे कुछ नही होगा।”
“मै आपके बिना नहीं रहूंगी।” व्यास के गले से लगकर पंछी रोने लगी।
“अरे मेरा बच्चा चुप हो जा। दद्दू कही नही जाने वाले। हमेशा तुम्हारे साथ ही रहेंगे।” व्यास ने पंछी के सिर पर हाथ फिराते हुए कहा। पंछी अभी तक भी चुप नही हुई थी।
“अच्छा बच्चा सॉरी। कान पकड़कर सॉरी। आगे से कभी ऐसी बात नहीं कहूंगा।” कहकर व्यास ने अपने दोनों कान पकड़ लिए। व्यास के कान पकड़ते ही पंछी चुप हो गई।
“दवाई भी टाइम से लूंगा।” पंछी को चुप होते हुए देख व्यास ने कहा।
“पक्का?” पंछी ने सिसकते हुए पूछा।
“हां बाबा पक्का।” कहकर व्यास मुस्कुरा दिया। बदले में पंछी भी मुस्कुरा दी।
“वैसे भी मुझे तुम्हारे होते हुए किसी बात की फिक्र करने की कोई जरूरत नही है।” व्यास ने बड़े गर्व के साथ कहा।
“और वो क्यों?” पंछी ने जवाब जानते हुए भी जानबूझकर पूछा। 
“वो इसलिए तुम मेरी अम्मा बन जाती हो।” कहकर व्यास मुस्कुरा दिया। बदले में पंछी ने मुंह बना दिया।
“तुम मेरी परवाह ही इतनी ज्यादा करती हो कि मुझे अपनी परवाह करने की कोई जरूरत ही नहीं है। तुमने मुझे जीने की एक नई वजह दी है मेरे बच्चे। तुम्हारे होते हुए मुझे अपनी फिक्र करनी पड़े ऐसा कभी हो ही नही सकता।” व्यास ने भावुक होते हुए कहा।
“और आपकी वजह से मै जिंदा हूं... आप भी तो मेरी कितनी परवाह करते है।” पंछी एक बार फिर से भावुक होने लगी थी। व्यास को वह सिर्फ और सिर्फ हँसते हुए ही अच्छी लगती थी दुःखी नही। 
“पर कभी कभी मेरी ही दादी अम्मा बन जाती हो। मैने कभी तुम्हें डाटा भी नही और खुद को देखो कैसे मेरे पीछे पड़ी रहती हो।” कहकर व्यास पंछी का मुंह देखने लगे। वह बच्चों की तरह मुंह बनाने लगी। जिसे देखकर व्यास खिलखिला कर हंस दिया। व्यास को हंसता हुआ देख पंछी भी हंसने लगी। 
“आप मेरी बात मान ले तो मुझे दादी अम्मा ना बनना पड़े। कितने नखरे करते हो आप।” पंछी ने जवाब दिया। जिसे सुनकर व्यास चुप हो गया और दोबारा फिर से हंसने लगा। अपनी हंसी पर काबू पाते हुए वह बोला। “तुमने ही आकर मेरे नखरे बढ़ा दिए अब भुगतो।”
“बाकि बातें बाद में। मै पहले जाकर आपकी दवाई ले आती हूं।” पंछी ने अपनी जगह से खड़े होते हुए कहा।
“नही....” व्यास ने अपने दोनों कानों पर हाथ रखते हुए कहा। 
“आपको जल्दी ठीक होना है ना। फिर हम दोनों साथ में बैडमिंटन खेलेंगे।” कहकर पंछी वहां से चली गई।
व्यास जाती हुई पंछी को देखता रहा। सच ही तो था पंछी की वजह से व्यास को जीने की नई वजह मिल गई थी। वह अब सही मायने में अपनी जिंदगी जीने लगा था। वरना पहले वह जिंदा तो था पर अपनी जिंदगी ही नही जी रहा था। पंछी के आने के बाद व्यास को अपनी तबियत में सुधार साफ साफ महसूस हो रहा था।
★★★
जारी रहेगी...मुझे मालूम है आप सभी समीक्षा कर सकते है, बस एक बार कोशिश तो कीजिए 🤗❤️

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3 Comments

Karan

28-Dec-2021 01:58 PM

Good job..!

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Intresting

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Swati chourasia

16-Dec-2021 03:00 PM

Very beautiful 👌

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